सरकार की दोहरी नीति के कारण डिजिटल मीडिया और ई-पेपर की मान्यता अधर में, यह अत्यंत चिंतनीय स्थिति: अनुराग सक्सेना

डिजिटल मीडिया और ई-पेपर के समक्ष मौजूद चुनौतियों को लेकर जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया की वर्चुअल बैठक संपन्न

रांची: मौजूदा दौर में पत्रकारिता अपने शैशवावस्था को छोड़कर आधुनिक पत्रकारिता का रूप ले चुकी है। अब सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए हर तरह के विकल्प उपलब्ध हैं। ऐसी स्थिति में डिजिटल मीडिया और ई-पेपर की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन सरकार की दोहरी नीति के कारण डिजिटल मीडिया और ई-पेपर को मान्यता दिलाने का काम अधर में लटका हुआ है। यह चिंताजनक स्थिति है।

जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया (जेसीआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने डिजिटल मीडिया और ई-पेपर की मान्यता और इनके समक्ष मौजूद चुनौतियों के विषय पर आयोजित एक वर्चुअल बैठक को संबोधित करते हुए उपरोक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया का अपना एक अलग महत्व होता है। बिना स्वतंत्र पत्रकारिता के स्वस्थ लोकतंत्र का सपना पूर्णतः अधूरा है।

उन्होंने कहा कि आज आधुनिक पत्रकारिता के इस दौर में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए हर तरह के विकल्प मौजूद हैं। परंतु कभी-कभी इन विकल्पों के माध्यम से उत्तेजित सामग्री परोसने के कारण समाज में विकृति और अव्यवस्था का माहौल बन जाता है। इस कारण कभी-कभी स्थिति अनियंत्रित भी हो जाती है। इसके बावजूद डिजिटल मीडिया का अपना एक अलग महत्व है।

अनुराग सक्सेना ने कहा कि हाल के दिनों में डिजिटल मीडिया का महत्व और भी बढ़ गया है। डिजिटल मीडिया ने समाज में अपना एक अलग मुकाम हासिल कर लिया है। आज कोई भी खबर कुछ ही पलों में केवल कुछ लोगों तक ही नहीं, बल्कि कई देशों तक में प्रसारित की जा सकती है। आज डिजिटल मीडिया का कार्यक्षेत्र सीमित न रहकर असीमित हो गया है। ऐसी स्थिति में इनके पंजीकरण और मान्यता की मांग उठना स्वाभाविक है।

उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया को पंजीकृत मीडिया में स्थापित करने से लोगों को तो इसके फायदे मिलेंगे ही, दूसरी ओर सरकार भी इन पर अपना नियंत्रण बनाते हुए इसे निरंकुशता से बचा सकेगी। परंतु सरकार की दोहरी नीति के कारण डिजिटल मीडिया की मान्यता अधर में लटकी हुई है। यह गंभीर चिंता का विषय है। अब डिजिटल मीडिया के पत्रकार भी खबरों की विश्वसनीयता बनाए रखने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। खबरों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कई बार पत्रकारों को जान का जोखिम उठाना पड़ता है। संगठित अपराध हो या किसी माफिया और अधिकारी को बेनकाब करना हो, जब भी कोई पत्रकार हिम्मत जुटाता है, तो उसे कुचलने के लिए हर तरफ से पूरी कोशिश की जाती है।

अनुराग सक्सेना ने कहा कि जान का जोखिम उठाने वाले ऐसे पत्रकारों से भी पत्रकार होने का सबूत मांगा जाता है। परंतु डिजिटल मीडिया का पंजीकरण न होने के कारण पत्रकारों के प्रेस कार्ड जारी नहीं हो पाते और यदि जारी होते भी हैं, तो अधिमान्यता की शर्तें पूरी नहीं हो पातीं। इस कारण ऐसे पत्रकारों को फर्जी पत्रकार या तथाकथित पत्रकार की संज्ञा भी दे दी जाती है। संगठन की ओर से सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों तक इस तरह की जानकारी पहुंचाने के बावजूद सरकार अनजान बनी हुई है।

अपनी बात रखते हुए सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता एवं विधि विशेषज्ञ डॉ. नूपुर धमीजा ने कहा कि आज के दौर में डिजिटल मीडिया के पत्रकारों से पंजीकरण दिखाने के साथ ही कई और गंभीर प्रश्न किए जाते हैं। डिजिटल मीडिया पर पाबंदी लगाने का सबसे बेहतर और आसान तरीका है उसे झूठा बतला देना या उसके पंजीकृत न होने की धौंस दिखाना। कई बार बड़े मीडिया संस्थान विज्ञापन पाने के दबाव में आसानी से मैनेज हो जाते हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया पर ऐसी बंदिशें संभव नहीं हैं। आज के दौर में डिजिटल मीडिया पर जनता का भरोसा भी बढ़ा है।

उन्होंने कहा कि पहले लोग डिजिटल मीडिया की खबरें पढ़कर सही या गलत के फैसले के लिए प्रिंट या टीवी देखा करते थे। लेकिन आज समय बदल चुका है और लोग अब टीवी या प्रिंट में छपी खबरों की पुष्टि करने के लिए यूट्यूब, फेसबुक या न्यूज़ पोर्टल जैसे डिजिटल मीडिया का सहारा लेते हैं। अब डिजिटल मीडिया पर भरोसेमंद, शोधपरक और जनपक्षधर पहचान वाले तमाम पत्रकार मिल जाएंगे, जिनके ऊपर जनता किसी भी कॉरपोरेट घराने के पत्रकारों और पत्रकारिता से अधिक भरोसा करती है।

डॉ. नूपुर धमीजा ने कहा कि अब समय आ चुका है कि डिजिटल मीडिया को पंजीकृत मीडिया के रूप में मान्यता दी जाए। चूंकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी डिजिटलाइजेशन की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं, इसलिए डिजिटल मीडिया का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

वर्चुअल बैठक को वरिष्ठ पत्रकार डॉ एके राय ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में डिजिटलाइजेशन के कारण देश में व्यापक स्तर पर बदलाव हो रहा है। इससे मीडिया के क्षेत्र पर भी बड़ा प्रभाव हुआ है। देश में डिजिटल मीडिया और ई-पेपर के क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई है। इनके आने से दूर-दराज के गांवों और देहात की खबरें भी अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने लगी हैं।

उन्होंने कहा कि आज के समय में डिजिटल मीडिया की पहुंच हर घर तक हो चुकी है। ऐसी स्थिति में सरकार को जल्द से जल्द डिजिटल मीडिया के पत्रकारों को भी अन्य पत्रकारों की तरह ही मान्यता प्रदान करके जिम्मेदारी उठाने की शुरुआत करनी चाहिए। साथ ही डिजिटल मीडिया के नियमन और नियंत्रण के लिए तथा पत्रकारों के हित में मीडिया आयोग का गठन भी जल्द से जल्द किया जाना चाहिए।

अपनी बात रखते हुए संगठन के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. आर सी श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया के बीच सौतेलापन का व्यवहार कर रही है। वर्तमान समय में डिजिटल मीडिया का अपना एक अलग महत्व है। इसका पंजीकरण इससे जुड़े पत्रकारों के लिए मान-सम्मान की बात है। आज डिजिटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों की संख्या लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों में पहुंच चुकी है।

उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस संबंध में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाती है, तो ऐसी स्थिति में आपसी भेदभाव और छोटे-बड़े की भावना को ताक पर रखते हुए हमें एकजुट होकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होगा, ताकि डिजिटल मीडिया और ई-पेपर को यथोचित सम्मान मिल सके।

संस्था की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अशोक झा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज कई राज्यों की सरकारें डिजिटल मीडिया के महत्व को समझते हुए उन्हें विज्ञापनों के साथ-साथ उचित सम्मान देने की तरफ अग्रसर हुई हैं। परंतु जब तक केंद्र सरकार की ओर से इस संबंध में कोई नीति निर्धारित नहीं की जाती, तब तक राज्य सरकारों द्वारा किया गया प्रयास अधूरा ही साबित होगा।

राजस्थान से संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी राजू चारण ने कहा कि भारत के कई राज्यों ने डिजिटल मीडिया को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता देने के लिए हामी भरी है। परंतु यह पर्याप्त नहीं है। इस संबंध में और भी कार्य करने की आवश्यकता है। जब तक डिजिटल मीडिया को मान्यता नहीं मिल जाती, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा।

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