खतियान आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे आंदोलनकारियों ने जताया आभार
रांची: झारखंड में चल रहा खतियान आंदोलन एक जन आंदोलन था, जो वर्षों से लोगों के दिलों-दिमाग में सुलग रहा था। इसकी शुरुआत 25 दिसंबर 2021 को भाषा आंदोलन के रूप में बोकारो से हुई थी। आज झारखंड विधानसभा से 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति पारित होना हमारी पहली जीत है। इसके लिए हेमंत सरकार को धन्यवाद देना बनता है।
झारखंड विधानसभा से 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति पारित होने के बाद पहली प्रतिक्रिया देते हुए इस आंदोलन का चेहरा रहे सफी इमाम और राजेश ओझा ने उपरोक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन की शुरुआत भाषा आंदोलन के रूप में हुई थी, जो देखते ही देखते एक जन आंदोलन में बदल गया। इसे एक समिति का रूप देकर झारखंड भाषा संघर्ष समिति का नाम दे दिया गया।
बता दें कि 25 दिसंबर 2021 को बोकारो के बिरसा चौक पर 11 विधायकों का पुतला दहन करके इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस पुतला दहन कार्यक्रम में सफी इमाम, राजेश ओझा, तीर्थनाथ आकाश, राजेश महतो सहित कई अन्य युवा शामिल थे।
जब इस आंदोलन के तहत झारखंड भाषा संघर्ष समिति का गठन हुआ, तो इसमें एक के बाद एक लोग जुड़ते चले गए। बैठकें और सभाएं होने लगीं। इसी क्रम में 30 जनवरी 2022 को एक विशाल मानव श्रृंखला भी बनाई गई थी।
इस आंदोलन के दौरान विधानसभा सत्र से कुछ दिन पहले आंदोलनकारी तीर्थनाथ आकाश ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर भाषाई अतिक्रमण के खिलाफ धनबाद से रांची तक की पदयात्रा की और राजभवन के समक्ष धरना भी दिया।
दूसरी ओर कसमार के बगियारी मोड़ में आयोजित एक आपातकालीन बैठक के दौरान सफी इमाम, अमरेश लाल महतो, भुवनेश्वर महतो एवं अन्य आंदोलनकारियों ने भाषा आंदोलन से इतर खतियान आंदोलन को तेज करने की रणनीति तैयार की। इनका मानना था कि भाषाई आंदोलन से वैमनस्यता बढ़ने का खतरा है। इसलिए खतियान संघर्ष समिति नामक एक संगठन के नेतृत्व में पूरे झारखंड में खतियान रथ यात्रा की योजना बनाई गई।
कहते हैं कि खतियान रथ यात्रा की सहायता से भाषाई आंदोलन को खतियान आंदोलन में बदलने का उद्देश्य बहुत हद तक सफल हुआ। इसी बीच आंदोलनकारी जयराम महतो भी आंदोलन से जुड़े और आगे चलकर उन्होंने झारखंडी भाषा-खतियान संघर्ष समिति नाम का संगठन तैयार करके सभाएं करनी शुरू कर दीं।
बताते हैं कि इस आंदोलन के दौरान झारखंड आंदोलनकारी एवं पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा, पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और पूर्व विधायक अमित महतो पार्टी छोड़कर इस आंदोलन में शामिल हुए।
इस दौरान अनेक आदिवासी-मूलवासी संगठनों ने राज्य के अलग-अलग स्थानों पर खतियान आधारित स्थानीय नीति-निर्माण की मांग जोर शोर से उठाई। सभाओं और सम्मेलनों का आयोजन होता रहा और विधानसभा का घेराव भी हुआ।
आखिरकार 11 नवंबर 2022 को झारखंड विधानसभा से 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति पारित हो गई। इस नीति के पारित होने के बाद आंदोलनकारियों ने अपने साथियों के साथ ही जनता और मीडिया को भी धन्यवाद दिया है।
साभार: विशेष खबर - रखे सबपर नजर
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