जब भोग-विलास की सारी सुविधाएं शुरू, तो झारखंड में रथयात्रा पर पाबंदी क्यों!

जगन्नाथपुर की रथयात्रा पर प्रशासन की शर्तें दुर्भाग्यपूर्ण: संजय पोद्दार

पाबंदियों के कारण लोगों की रोजी-रोटी पर चोट

रांची: श्री महावीर मंडल डोरंडा केंद्रीय समिति के अध्यक्ष संजय पोद्दार ने झारखंड की ऐतिहासिक रथयात्रा पर प्रशासन की ओर से थोपी गई शर्तों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए बड़ा प्रश्न उठाया है। उन्होंने कहा कि जब पूरे देश में भोग-विलास की सारी सुविधाएं शुरू हो गई हैं, तो झारखंड की ऐतिहासिक रथयात्रा पर कई तरह की शर्तें थोपने का क्या मतलब है।

'बेजुबान' से बात करते हुए संजय पोद्दार ने कहा कि कोरोना के बाद पूरे देश में लोगों की जीविका पर संकट आ चुका है। अब देशभर में माहौल सामान्य दिखने लगा है और लगभग हर तरह की पाबंदियां और प्रतिबंध हटा लिए गए हैं। परंतु रांची में आयोजित होने वाली यहां की ऐतिहासिक रथ यात्रा पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं।

उन्होंने कहा कि पूरे झारखंड में भोग-विलास की सभी सुविधाएं शुरू हो गई हैं। लोग क्लबों में और बार में जाकर शराब पी रहे हैं। मनोरंजन के सारे संसाधन शुरू हो चुके हैं। परंतु दूसरी ओर ऐतिहासिक रथयात्रा में मेला लगाने पर प्रतिबंध और रथयात्रा में सीमित संख्या में ही लोगों को शामिल होने की अनुमति देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

संजय पोद्दार ने कहा कि हाल ही के दिनों में देश भर के साथ ही झारखंड में भी कई पर्व मनाए गए हैं। परंतु अचानक ऐसा क्या हो गया कि इस रथयात्रा में मेले के आयोजन को अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि पुरी के बाद जगन्नाथपुर की रथयात्रा का सबसे बड़ा आयोजन रांची में होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। यहां हजारों स्थानीय और बाहर से आने वाले लोग अपनी छोटी-मोटी दुकानें लगाते हैं।

उन्होंने कहा कि विगत 2 वर्षों के दौरान कोरोना महामारी के कारण रथयात्रा के आयोजन पर पाबंदियां लागू थीं। इस वर्ष लोगों में भारी उत्साह था। मेले में दुकानें और झूले लगाने वालों को उम्मीद थी कि इस वर्ष उनकी आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है। परंतु अचानक रथयात्रा में मेले के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया और लोगों की उम्मीदें टूट गईं।

संजय पोद्दार ने कहा कि रांची में आयोजित होने वाली रथयात्रा की विशेषता यह है कि यहां छोटा नागपुर के नवविवाहित जोड़े शादी के दौरान जो मौर चढ़ाते हैं, उसे यहां मंदिर में अर्पित किया जाता है। यह बहुत ही पुरानी परंपरा है। ऐसे में इस आयोजन पर पाबंदी लगाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रशासन को इस विषय पर गंभीरतापूर्वक सोच-विचार करने के साथ ही यहां के लोगों की आस्था को भी ध्यान में रखना चाहिए और मेले के आयोजन को पूर्ण रूप से अनुमति देनी चाहिए।

(स्रोत: विशेष न्यूज नेटवर्क - भारत)

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